सादर अभिवादन
फरवरी का पहला दिन
सच मे खुशगवार है
कुछेक चिन्ताओ को छोड़कर
कोई चिन्ता नहीं
चलिए देखते हैं सारा विश्व चिन्तित क्यों है
फरवरी का पहला दिन
सच मे खुशगवार है
कुछेक चिन्ताओ को छोड़कर
कोई चिन्ता नहीं
चलिए देखते हैं सारा विश्व चिन्तित क्यों है
कोरोना संक्रमण के सबसे संभावित जीव चमगादड़ और सांप बताए जा रहे हैं, इन्हें खाने से बचने को चीनी सरकार ने एडवाइजरी जारी की है परंतु सोशल मीडिया प्लेटफार्म ट्विवटर पर ही कोरोना से रिलेटेड जो वीडियो तैर रहे हैं , उनमें जीवित (हाफ-बॉयल्ड ) चमगादड़, चूहे, टैडपोल, मेढक, कुत्ते खाने की मेज पर सजे दिखाई दे रहे हैं, उन्हें चाव से खाते लोग और इनके अंगों को प्लेटों में रखकर डिनर टेबल डेकोरेट करते दिखाई दे रहे हैं।
https://youtu.be/JHo5BGGN3gA
https://youtu.be/JHo5BGGN3gA
ये सब क्या है।
अन्य नियमित रचनाएँ
बारात वसंत की ..सुजाता प्रिय
मौसम की पालकी पर सज सँवरकर ।
आया है वसंत देखो जी दुल्हा बनकर।
नव पल्लवों ने वंदनवार सजाए।
मंजरियों ने स्वागत द्वार सजाए।
कोयल गा रही स्वागत गान।
भौंरों ने मीठे छोड़े तान।
तारीख़ पे तारीख़ ...पंकज प्रियम
कौन बचा रहा दरिंदो को?
फिर क्यूँ टली दरिंदो की फाँसी?
अपनी बेटी को इंसाफ़ दिलाने को
लड़ रही एक माँ को चुनौती दे गया वकील
अनन्तकाल तक नहीं होने देंगे फाँसी!
बसंत के दरख्त ...पुरुषोत्तम सिन्हा
कई रंग, अंग-अंग, उभरने लगे,
चेहरे, जरा सा, बदलने लगे,
शामिल हुई, अंतरंग सारी लिखावटें,
पड़ने लगी, तंग सी सिलवटें,
उभर सा गया हूँ!
या, और थोड़ा, निखर सा गया हूँ?
कभी था, अव्यक्त जैसे!
एक रोटी चार टुकड़े ...आँचल पाण्डेय
एक रोटी चार टुकड़े बाँटकर खाते रहे,
हम तो अपना पेट यूँ ही काटकर जीते रहे।
ए गुले गुलज़ार तेरी थाल में बोटी सजी,
मांस अपना दे के तेरा पेट पालते रहे।
आज अब बस
कल फिर मिलते हैं
सादर
अन्य नियमित रचनाएँ
बारात वसंत की ..सुजाता प्रिय
मौसम की पालकी पर सज सँवरकर ।
आया है वसंत देखो जी दुल्हा बनकर।
नव पल्लवों ने वंदनवार सजाए।
मंजरियों ने स्वागत द्वार सजाए।
कोयल गा रही स्वागत गान।
भौंरों ने मीठे छोड़े तान।
तारीख़ पे तारीख़ ...पंकज प्रियम
कौन बचा रहा दरिंदो को?
फिर क्यूँ टली दरिंदो की फाँसी?
अपनी बेटी को इंसाफ़ दिलाने को
लड़ रही एक माँ को चुनौती दे गया वकील
अनन्तकाल तक नहीं होने देंगे फाँसी!
बसंत के दरख्त ...पुरुषोत्तम सिन्हा
कई रंग, अंग-अंग, उभरने लगे,
चेहरे, जरा सा, बदलने लगे,
शामिल हुई, अंतरंग सारी लिखावटें,
पड़ने लगी, तंग सी सिलवटें,
उभर सा गया हूँ!
या, और थोड़ा, निखर सा गया हूँ?
कभी था, अव्यक्त जैसे!
एक रोटी चार टुकड़े ...आँचल पाण्डेय
एक रोटी चार टुकड़े बाँटकर खाते रहे,
हम तो अपना पेट यूँ ही काटकर जीते रहे।
ए गुले गुलज़ार तेरी थाल में बोटी सजी,
मांस अपना दे के तेरा पेट पालते रहे।
आज अब बस
कल फिर मिलते हैं
सादर
शुभ संध्या,
ReplyDeleteबसंत के ये दरख्त और ब्लाॅग की यह दुनियाँ सदा गुलजार रहे।
आभार, शुभकामनाएँ ।
जी दी बिल्कुल, परंतु कोई हमारे धर्म, संस्कार एवं परम्परा की तरह आयुर्वेद को झुठला दे,तो फिर क्या किया जाए ।
ReplyDeleteचिन्ता का विषय तो यह है कि इन्हें समृद्ध करने केलिए क्या प्रयास हुये।
बसंत मय एक और सुंदर अंक का स्वागत।
कोरोना वायरस में प्रस्तुत वीडियो प्राइवेट है
ReplyDeleteआप दिए हुए लिंक को क्लिक कर देख सकते हैं
सादर..
शुभ संध्या।बहुत ही सुंदर और सरस अंक दीदीजी।वसंत के उल्लास से सुसज्जित रचनाओं के साथ-साथ।रोगों का आयुर्वैदिक निदानों के महत्व को बताना काफी सराहनीय है।मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यबाद।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अंक।
ReplyDeleteएक ओर सुंदर अंक का स्वागत है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर अंक आदरणीया दीदी जी य। मेरी रचना को स्थान देने हेतु हार्दिक आभार। सभी रचनाकारों को खूब बधाई। सादर प्रणाम 🙏 शुभ संध्या
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