Tuesday, August 31, 2021

747 ...गांवों में शहरों का जन्म हो रहा है

सादर अभिवादन
आज दो दिन के हुए लल्ला
छः दिनों तक चलेगा हल्ला


जन्म दिवस तो नंद लाल का
हम हर वर्ष मनाते है।
पर वो निष्ठुर यशोदानंदन
कहाँ धरा पर आते हैं।
भार बढ़ा है अब धरणी का
पाप कर्म इतराते हैं।
वसुधा अब वैध्व्य भोगती
कहाँ सूनी माँग सजाते हैं।



शब्दहीन ओंठों पर चिपके हुए हैं मुद्दतों से,
ख़्वाबों के ख़ूबसूरत चुम्बन, आईने
की हंसी में है व्यंग्य मिलित
कोई महिमा कीर्तन,
कौन किसे है
छलता
हैं



मन से सोचा
दिल से दोहराया
इतना प्यारा
फिर भी न अपना
घर दिल का
रहा कलुष भरा
स्वच्छ न हुआ



वो बचपन था, या अल्हड़पन था,
यौवन में डूबा, इक तन था,
इक दर्पण था, या, मेरा ही मन था,
कंपित होता, हर इक कण था!


सड़कों की
बदल रही
लम्बाई
चौड़ाई
बदल रहा
घर का
परिमाप है।
गाँवों में
शहर
का जन्म
हो रहा है!


आज के लिए बस

कल फिर.. 

Monday, August 30, 2021

746 ...कहता है कि,.कन्हैया तो दूध-छाछ पीने वाले नंद बाबा का पुत्र था


सादर नमस्कार
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएं
सोची थी आज दिन भर फेसबुक में घूमूंगी
पर कहां.. दो प्रस्तुतियां
खैर चलिए रचनाएँ देखें

उखड़ो-उखड़ो खड़ो बाजरो
ओ जी उलझा मूँग-ग्वार
हरा काचरा सुकण पड़ग्या
ओल्या-छोना करे क्वार
सीटा सिर पर पगड़ी बांध्या
दाँत निपोर हर्षाव है।।



ये तो अच्छा हुआ वो रूठ कर यूँ ही चल दिए मुझसे,
अगर तीरे नज़र चलता तो दिल आर-पार हो जाता |

अमानत थी किसी की फिर भी इस दिल को रखना काबू में,
कशिश इतनी थी आँखों में ये दिल तार-तार हो जाता |

परन्तु मैं अकिंचन
न रंग न शब्द न छैनी
केवल भावनाएं हैं
वो भी कभी उफनती किलकती
कभी लड़खड़ाती
वही अर्पित करती हूं श्रीहरि
अपने अंक लगाए रखना


"कहता है कि,.कन्हैया तो
दूध-छाछ पीने वाले नंद बाबा का पुत्र था!.
शराब पीने वाले का नहीं।"
पति पत्नी के बीच कुछ देर के लिए
एक गहरा सन्नाटा छा गया



मुरलीधर माधव नैन बसा
छवि जिनकी बहुत निराली है
कभी ले हरी नाम अरी रसना!
अब साँझ भी होने वाली है......

आज के लिए बस

कल फिर.. 

Sunday, August 29, 2021

745...साप्ताहिक अवलोकन ..दूसरा अंक

साप्ताहिक अवलोकन ..दूसरा अंक
सादर नमस्कार
नेता एक रूप अनेक
नेता - १

सर पर गांधी टोपी
मुंह में पान
कुर्सी में अटकी
जिसकी जान

नेता - २

लोगों को
मदारी बन कर हंसाए
कुर्सी पर बैठते ही
जोंक बन जाए

नेता - ३

पांच साल तक
अंग्रेज़ी में करे बात
चुनाव पास आते हि
हिन्दी को करे याद

नेता - ४

चुनाव में
विरोधियों को निकाले गाली
चुनाव खत्म होते हि उनके साथ
मिलकर बजाय ताली

नेता - ५

आज के नेता
कुम्भकरण को आदर्श मानते हैं
तभी तो पाँच साल में एक बार
नींद से जागते हैं

नेता - ६

नेता और उल्लू
एक से होते हैं
दोनों हि दिन में सोते हैं
फर्क बस इतना
उल्लू पेड पर
नेता संसद में होते हैं

नेता - ७

नेता और मेंढक में
एक बात सामान्य है
दोनों अपने अपने मौसम में आते
अपना अपना राग सुनाते
नेता वोट वोट
मेढक टर्र टर्र टर्राते
फर्क - मेढक साल के साल आते,
नेता पाँच साल बाद मुस्कुराते

नेता - ८

नेता और बिल्ली में
सामान्य रूप से क्या पाया
दोनों ने किसी न किसी को उल्लू बनाया
फर्क बस इतना है
नेता ने जनता का,
बिल्ली ने बंदर का माल खाया

नेता - ९

नेता जी ने
चुनाव जीतने कि करी तैयारी
खद्दर और लाठी छोड़ कर
ऐ के ४७ से कर ली यारी
- दिगम्बर नासवा
सादर 
अगले सप्ताह फिर


Saturday, August 28, 2021

744 ...मैं तो शाश्वत प्रेम से मिल रहा हूंँ

सादर अभिवादन
कल रात सपने में दिखा
भारत के नक्शे में
अफगानिस्तान और पाकिस्तान  दोनों दिखे
आप लोग भी आमीन लिखिए
रचनाएं पढ़िए ...

जब जीवन का दान मिले,
वंश साथ चलते,
मिटते जो सारे सुख फिर,
रहो हाथ मलते।
छोड़ दो अंहकार अभी,
हठ जो यह ठानी।
आजा शरण....


कान्हां तुम्हारी बाँसुरी का स्वर
लगता मन को मधुर बहुत
खीच ले जाता वृन्दावन की गलियों में
मन मोहन जहां तुम धेनु चराते थे  |


लाख जतन किए
लाख दुआएँ माँगी
रोकूँ किसी को
स्वप्न दफ़न हुए
आग लगा दी मैंने
अपने किसी को
पीड़ा हुई अपरम्पार


भयंकर भ्रामक इन कवि मंचो की
वेदना भरी तस्बीर खीच रहा हूँ
जिनको साईन तक नही आती
वो साहित्य मंच चला रहे है


जब देखो मेरा  जनाजा जाते हुए,
पीड़ासक्त होकर रोना नहीं...
मैं अलविदा नहीं कह रहा हूंँ,
मैं तो शाश्वत प्रेम से मिल रहा हूंँ।


हम एक इकाई
बस चिरकाल तक
समय से बंधे,
जड़त्व से बंधे
एक हाथ की इस दूरी से
निभाते जाना प्रेम
तू भी हमारी तरह

........
आज के लिए बस

कल फिर.. 

Friday, August 27, 2021

743 ...ये बिल्कुल भी क्या होता है?

सादर अभिवादन
जा रहा है अगस्त भी
परेशान होने की बारी हमारी
खत्म ही समझिए
ये परेशानियां अब पड़ोसी देशों में
चली गई है....
ये मत समझिएगा कि गई परेशानी
गई है तो कुछ लेकर आएगी
और लाएगी तो कुछ मीठा ही लाएगी

महफ़िल से अचानक ही अधर में चले जाना,
देखो तो ग़ज़ल में वो असर है कि नहीं है |

छलनी जो किया तूने हुआ कैसे मैं जालिम,
अब सोच कोई मुझमें कसर है कि नहीं है |


यही समय होता है
भाग निकलने का
एकांत की ठंडी
कालकोठरी से
किसी भी दिशा में
किसी भी गली में
किसी भी सड़क पर
बस, एकांत से परे


प्रस्तर युगीन,
किसी एक आदिम बिहान में
कदाचित, अपना पुनर्मिलन हो,
गुह कंदराओं से निकल कर,
अरण्य वीथिकाओं में
कहीं हिम कणों से
धुल कर पारदर्शी ये जीवन हो,


आज तुम्हें देख कर
लगता है
तुम तो किसी और आंगन में
तुलसी,मनीप्लान्ट,
पीपल,बरगद
सब कुछ हो…


आज कक्षा में एक विद्यार्थी को डांटते हुये जब मैने ने कहा- कि तुम पढाई में बिल्कुल भी मन नही लगाते हो, तभी तुम्हारे अंक बिल्कुल भी अच्छे नहीं आते। खेल कूद के अलावा जरा पढाई पर भी ध्यान दो। तो वह नन्हा सा बच्चा मासूमियत से बोला- मैडम जी ये बिल्कुल भी क्या होता है?


आज के लिए बस

कल फिर.. 

Thursday, August 26, 2021

742 ...जब भी उसके माँ-बाप कहते हैं, ‘काश,हमारे यहाँ बेटा पैदा होता

सादर अभिवादन

बूँदें!
आँखों से टपकें
मिट्टी हो जाएँ।
आग से गुज़रें
आग की नज़र हो जाएँ।
रगों में उतरें तो
लहू हो जाएँ!
या कालचक्र से निकलकर
समय की साँसों पर चलती हुई
मन की सीप में उतरें
और
मोती हो जाएँ|
-मीना जी
...
अब रचनाएँ

गाँव की वह छोटी-सी लड़की
बहुत उदास हो जाती है,
जब भी उसके माँ-बाप कहते हैं,
‘काश,हमारे यहाँ बेटा पैदा होता.’


ये तेरा है ये मेरा है
लड़ते रहे बनी ना बात,
खून जिस्म में कमा के लाते
फिर भी सुनते सौ सौ बात
मुंह फेरे सब अपनी गाते
अपनी ढपली अपना राग,


सूरज के तेज ने टहनियों पर
टाँगा है दायित्त्व भार
चाँदनी के झरते रेशमी तार
चाँद ने गढ़ा है सुनहरा जाल।


आज कुछ अजब सा देखा
बात तो दोनों की सही थी
दोनों ही अपने पेट वास्ते
जीवन का नियम संभाले
एक तो बिल से निकला


चलो
खुद से
एक समझौता करते है
मुझे नींद आ जाये
कुछ ऐसा करते है

आज के लिए बस

कल फिर.. 

Wednesday, August 25, 2021

741 ...शून्य विस्तार, तुम्हारी आँखों में

सादर अभिवादन
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी
बस ये आ ही गई ....
देखें माखनचोर करेगा क्या
....
युग बदल रहा है
लोग भी बदल रहे हैं
बदल तो मौसम भी रहा है
इस अदला-बदली में तो
लेखकों की सियाही
के रंग भी बदल रहे है
पत्रकार कवि हो रहे हैं
और उलटे हो रहे हैं कविगण
पत्रकार बनकर....

यहाँ पर लिखना ज़रूरी नहीं
पढ़वाना जरूरी है...
रचनाएँ....

पूरक जब मतभेद, चली जीवन नैया
खट्टी-मीठी रार, तुम्हारी आँखों में।।

रही अकिंचन मात्र, मिला जबसे संबल
करे शून्य विस्तार, तुम्हारी आँखों में।।


प्रियतम के प्यार का
रँग वो ख़ुमार का

उड़ेलता हुआ कभी
बिखेरता हुआ कभी
लहर लहर समुद्र पर
सूरज के प्यार का
रँग वो ख़ुमार का


कोई नहीं पढ़ना चाहता, किसी का
जीवन-वृत्तांत, पड़े रहते हैं
असंख्य पाती पुराने
लिफ़ाफ़े के
अंदर,


ये सब
शायद कुछ ऐसा ही है
जैसे गुलाब की सुगंध
फूल में न होकर
काँटों में से बरस रही हो !


महंगा खाना खाने के लिए
महंगे कपड़े पहनते हैं
और वो दो जून की रोटी में
दिन रात एक कर देते हैं
इसमें कुछ ग़लत नहीं है
यह सोच ही ग़लत है

आज के लिए बस
कल फिर..

 

Tuesday, August 24, 2021

740..सुख और दुख नदी के दो किनारे खुली किताब

सादर अभिवादन
अलसाया सा भादो
सावन ही की तरह
सूखा सा ऊमस भरा
ठीके है..सामने तीज भी है
रचनाएं देखिए ...

शाश्वत सच मैं चौराहे पर खड़ा हुआ
क्योंकि मुश्किल में पड़ा हुआ
मैं इधर जाऊं या उधर जाऊं,
यह प्रश्न सामने खड़ा हुआ ,


"कन्यादान कौन करेगा..?" 
नेहा और नितिन की शादी के समय पण्डित जी ने कहा। 
दोनों की शादी मन्दिर में हो रही थी..।
"आप अनुमति दें तो मेरा दोस्त दीपेन कन्यादान करना चाहता है 
और वह अपनी पत्नी के साथ यहाँ उपस्थित भी है..। 
सामने आ जाओ दीपेन..," वर नितिन ने कहा।


सूत भर हिला नहीं
थिर शांत झील में
चाँद को समाना है
दूर नहीं जाना कहीं
निज गाँव आना है


नदिया-तीरे
झील में उतरता
हौले से चंदा

बहती नदी
आँचल में समेटे
जीवन सदी

सुख और दुख
नदी के दो किनारे
खुली किताब


चंदा चमका भाल पर,रजनी शोभित आज।
पूनम के आलोक में,मुख पर लाली लाज।।

मुख पर लाली लाज,चुनर है तारों वाली।
लगे सलौनी रात,कहें क्यों उसको काली।
....


Monday, August 23, 2021

739 ..अपने अंतस की बात खुद ही सुननी पड़ती है !

सादर अभिवादन
चला गया सावन
सूखा - सूखा
क्या भी करे बिचारा
अपना सारा पानी
अषाढ़ में ही गिरा दिया
चलिए रचनाओं की ओर...

अब इस शब्द पर प्रतिबंध तो लग गया ! पर देखना यह है कि वर्षों से कव्वालियों और भजनों में प्रयुक्त होता आया यह शब्द, अपने सकारात्मक अर्थ को कब फिर से पा सकेगा ! क्या लोग इस शब्द के सही अर्थ को समझ इसे फिर से चलन में ला सकेंगे ! गुरु गोरखनाथ जी के ही शब्दों में, कोई बाहरी रोक-टोक तो कर सकता है पर अंदरूनी रोक खुद ही करनी पड़ती है ! अपने अंतस की बात खुद ही सुननी पड़ती है !  

हमने देखा है शुभ्र वस्त्रों में लोगों
का वीभत्स अट्टहास, वो
बामियान हो, या
उत्तर कोलकाता
मूर्ति तोड़ने
वाले
कहाँ नहीं मौजूद, हमने देखा है - -


पता तो है तुझे
कि बात जब स्पष्टीकरण पर आ जाए
तो मानो,तुम गलत हो चुके हो
कुछ भी कहना जब समय की मांग नहीं,
तो बेहतर है एक लंबी ख़ामोशी
और ख़ामोशी की प्रतिध्वनि में
अपने 'अति' का मूल्यांकन !


सुनो
ये जो कुछ रातें है न,
थोड़ी खाली सी है
आबनूसी काली सी है!

कहती है वे,
तुम्हारी यादों के
शज़र के ही
टूटी कोई डाली ही है!


पेश हैं कुछ ऐसे शब्द और बातें जो सिर्फ बिहार के लोग सही से बोल पायेंगे:-
हमलोग के यहाँ idiot नहीं "बकलोल"होता है।।

हमलोग कटने पे बोरोलीन लगाते हैं, क्यूंकि
dettol से "परपराने" लगता है।।

हमलोग जान से नहीं ना मारते हैं
"मार के मुआ देते हैं"।।

हमलोग गला दबाते नहीं
"नट्टी टीप देते हैं"।।

हमलोग awsome काम नहीं करते
"गर्दा उड़ा देते हैं"।।

अब बस
सादर

Sunday, August 22, 2021

738 ..समस्याओं से कहो कि मेरे साथ ऊपरवाला है

सादर अभिवादन..

ऊपर वाले से ये मत कहो कि
मेरे साथ समस्याएं है बल्कि
समस्याओं से कहो कि मेरे साथ ऊपरवाला है.
अब रचनाएँ....


रक्षाबंधन के दिन हमेशा की तरह आरती की थाल में दो राखियाँ देख
शौर्य ने इस बार माँ से पूछा,
"मम्मी! सबके घर में सिर्फ़ बहन ही भाई को राखी बाँधती है और
हमने फिल्मों में भी यही देखा है न।
फिर आप ही क्यों मुझसे भी दीदी को राखी बँधवाती हो" ?  
तो माँ बोली,
"बेटा जानते हो न ये रक्षा बंधन है और इसका मतलब"...
"हाँ हाँ जानता हूँ रक्षा करने का प्रॉमिस है रक्षा बंधन का मतलब ,  
पर दीदी इतनी सुकड़ी सी... ये भला मेरी रक्षा कैसे करेगी ? मम्मी !
रक्षा तो मैं इसकी करुँगा बड़े होकर। पड़ौस वाले भैय्या की
तरह एकदम बॉडी बिल्डर बनकर...।


जागृत हो जाता है मन में ,
बचपन का वह लाड़ दुलार
जबकि मनौती मांगे बहना,
जिये भाई उसका सौ साल

ना आई तब याद करोगे
मेरी राखी जब पहुंचेगी
दुखी हो स्वीकार करोगे
यही बातें तब याद आएंगी
मन से न लगाना उन को  |
 सदा  समय एकसा नहीं रहता
उससे समझौता करना होता


बहना मेरी दूर पड़ा मै दिल के तू है पास
अभी बोल देगी तू "भैया" सदा लगी है आस

मुन्नी -गुडिया प्यारी मेरी तू है मेरा खिलौना
मै मुन्ना-पप्पू-बबलू हूँ बिन तेरे मेरा क्या होना ! -


दो बच्चे मेरे और दोनों जैसे उत्तरी घ्रुव और दक्षिणी ध्रुव।
बेटी नर्सरी में थी तो प्राय: आनन्दिता की सताई हुई बिसूरती हुई घर आती।
-आज आनन्दिता ने थप्पड़ मारा।
-आज  आनन्दिता ने नोचा।
-आज  आनन्दिता ने पेंसिल छीन ली।
-आज  आनन्दिता ने टिफिन खा लिया ।


भैय्या मेरे राखी के बंधन को निभाना

सादर

 

Saturday, August 21, 2021

737 नया अध्याय...साप्ताहिक अवलोकन

सादर नमस्कार
आज साप्ताहिक अवलोकन
आज मिली है समसामयिक रचना
ये बात 1965 के भारत - पाक  युद्ध  के समय की है.   जिसे मैंने अपने घर के बड़े    बुजुर्गों के   मुँह से कई बार  सुना  है |  हमारे  गाँव  में वायुसेना  स्टेशन है . सो युद्ध  की   आहट होते ही वहां   सुरक्षा  व्यवस्था  बढ़ा दी जाती   है   |  उस  समय  क्योंकि   संचार के साधन इतने नहीं थे ,सो  लोग बाग़ रेडियो  या अखबार के जरिये ही  युद्ध की सारी खबरें पाते थे |  सीमा पर   लड़ाई  चल रही थी |  अफवाहें भी उडती रहती थी| लोग   डर के साए में जीते थे कि कहीं   दुश्मन  एयरफोर्स स्टेशन  और गाँव  पर   बम  ना गिरा दे | लड़ाई के बीच एक सुबह पता चला कि अम्बाला के  सेंट पॉल चर्च पर पाक सेना के एक हवाई जहाज से हमला हुआ है , जिसका पायलट   पकड़ा भी गया है |   सेना द्वारा की गई पूछताछ  में   पता चला  कि वह पायलट  हमारे गाँव के   एक मुस्लिम परिवार का बेटा है .  जो   बँटवारे  के समय 1947 में   अपने परिवार के साथ पाकिस्तान चला गया था | उस समय उसकी उम्र  मात्र  6-7 साल की थी |बाद में वह पढ़-लिख कर पाक वायुसेना में पायलट  बन गया और  उसने अपने मिशन के तहत भारत -पाक   युद्ध में भाग लिया ,  जहाँ वह  इस  बमबारी के बाद पकड़ा गया |
 ये भी पता चला कि वह अम्बाला  जेल में बंद है | गाँव के कुछ  लोग जो उनके परिवार के परिचित थे , उससे मिलने  अम्बाला गये और बड़ी मुश्किल से उससे मिलने में सफल हुए
ऐसा  इसलिए  हुआ  होगा  शायद  ,  बँटवारे  को  ज्यादा  दिन  नहीं  हुये  थे और लोगों  में  बिछड़े  लोगों  के  प्रति  आत्मीयता  की  उष्मा  शेष  थी। | गाँव के लोगों को देखकर वह  पाक वायु सैनिक बहुत  खुश हुआ और उसने जो बताया उसे सुनकर सभी  हैरान रह गये ! उसने बताया  कि पहले  हमारे गाँव का  एयरफोर्स स्टेशन उसके निशाने पर था.  पर उसे अपनी जन्मभूमि याद थी , सो उसने  उसकी बजाय  ऐसी जगह को निशाना बनाया जो यहाँ से  बहुत दूर थी |  क्योंकि  अम्बाला हमारे गाँव से   लगभग 25 किलोमीटर दूर  है .  सो हमारे गाँव  को  ज़रा भी नुकसान  नहीं हुआ | मिलने गये लोगों से मिलकर  बड़ी भावुकता से अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए उसने .  उनके जरिये  अपने  बचपन के साथियों  और  परिचितों के साथ ,  अपनी जन्मभूमि  को भी  सलाम भेजा | |  उसके बाद   उसका कुछ पता नहीं चला | कुछ लोग कहते हैं कि उसे कुछ समय बाद छोड़ दिया गया था तो कुछ लोग कहते हैं वह  काफी  दिन जेल में बंद रहा |उस लड़ाई के बरसों बाद भी  हमारे गाँव में  .अपनी   जन्मभूमि  के उस  अनन्य प्रेमी .  गाँव के बेटे को बड़ी श्रद्धा से याद किया जाता है जिसने युद्ध  की विभीषिका के बीच  भी  अपनी जन्मभूमि की गरिमा को खंडित होने नहीं दिया और उसके प्रति अपना स्नेह कम होने नहीं दिया | बल्कि अपनी  साँसों की कीमत पर उसका मान बढ़ाया|

अंत में इस प्रार्थना के साथ कि मानवता को युद्ध   की विभीषिका से कभी गुजरना ना पड़े --
 दिवंगत शायर  साहिर की एक अमर नज़्म--

टैंक आगे बढ़ें या पीछे हटें,
कोख धरती की बांझ होती है.
फ़तह का जश्न हो या हार का सोग,
जिंदगी  मय्यतों पर रोती है.
इसलिए ऐ शरीफ़ इंसानों,
जंग टलती रहे तो बेहतर है.
आप और हम सभी के आंगन में,
शमा जलती रहे तो बेहतर है.
-रेणुबाला

अंत में सुनिए ये गीत


 

Friday, August 20, 2021

736 ..नज़रिया बदल रहा है लेखन का..

सादर अभिवादन..
आज मोहर्रम है
आज ही मानवता के लिए इमाम हुसैन ने दी शहादत,
दो ही शब्द याद रखिए मानवता और शहादत

आज का अंक...
"उन्हें मैं अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त करने का संदेश भेज रही हूँ!मेरी माँ अपने भाई को राखी कभी नहीं बाँधा। पण्डित जी से राखी लेकर अपने सिंहोरा में लपेट दिया करती थीं। सुयश तुम मेरा साथ देना ...!"

"जी अवश्य दादी माँ!" सुयश ने कहा

"जब तक हुमायूं अपनी सेना लेकर मेवाड़ पहुँचे, रानी कर्णावती का जौहर हो चुका था। आज तक कन्याओं का गुहार लगाना जारी है। इस साल से मैं भी भैया को राखी नहीं बाँधूगी...!" पोती सुमन का दृढ़ निश्चयी स्वर गूँजा।

"स्त्रियों को वल्लरी बनने के नसीब को बदलकर बरगद बनना तय करना होगा...।" पोता-पोती को अपने बाँहों में समेटते हुए दादी ने कहा।


एक अद्भुत अनुभूति लिए तुम होते हो क़रीब,
हिमशैल की तरह उन पलों में
निःशब्द बहता चला जाता है मेरा अस्तित्व,
गहन नील समुद्र की तरह
क्रमशः देह प्राण से हो कर तुम,
अपने अंदर कर लेते हो अंतर्लीन,


आज किसी को कम हम आँक रहे हैं
कल हमें कोई कम आँक रहा था

आज जिनके दुख पर हम हँस रहे हैं
कल हम पर शायद कोई हँस रहा था


राजनीति के
घिनौने खेलो में से
दंगा एक है।

मानवता को
हर धर्म से बड़ा
मान लो तुम।


इस्लामी आतंक में लुटा है कश्मीर भी कभी ऐसे ही
कश्मीरी पंडित यह किस्सा दबी जुबान लाए हैं

सेक्यूलरों ने सर्वदा हैवानियत के शोलों को हवा दी है
बचा कर इन की दोजख से अपनी जान लाए हैं
.....
नज़रिया बदल रहा है
लेखन का..
नियम है जो बात नागवार गुज़रती है
वही याद रह जाती हैं बरसों
सादर