सादर अभिवादन
आज का यह अंक राष्ट्रकवि स्मृतिशेष सुभद्रा कुमारी चौहान को समर्पित
सुभद्रा कुमारी चौहान (16अगस्त 1904-15 फरवरी 1948) हिन्दी की सुप्रसिद्ध कवयित्री और लेखिका थीं। उनके दो कविता संग्रह तथा तीन कथा संग्रह प्रकाशित हुए पर उनकी प्रसिद्धि झाँसी की रानी (कविता) के कारण है। ये राष्ट्रीय चेतना की एक सजग कवयित्री रही हैं, किन्तु इन्होंने स्वाधीनता संग्राम में अनेक बार जेल यातनाएँ सहने के पश्चात अपनी अनुभूतियों को कहानी में भी व्यक्त किया। वातावरण चित्रण-प्रधान शैली की भाषा सरल तथा काव्यात्मक है, इस कारण इनकी रचना की सादगी हृदयग्राही है।
जन्माष्टमी आ रही है..ये पंक्तियाँ याद आ गई
यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे।
मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे॥
ले देतीं यदि मुझे बांसुरी तुम दो पैसे वाली।
किसी तरह नीची हो जाती यह कदंब की डाली।।
तुम्हें नहीं कुछ कहता पर मैं चुपके-चुपके आता।
उस नीची डाली से अम्मा ऊँचे पर चढ़ जाता।।
कुछ और कविताएँ स्मृतिशेष सुभद्रा जी की
गलबाहें हों या कृपाण
चलचितवन हो या धनुष बाण
हो रसविलास या दलितत्राण;
अब यही समस्या है दुरंत
वीरों का कैसा हो वसंत
रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।
सरिता के नीरव प्रवाह-सा बढ़ता हो अपना जीवन।
हो उसकी प्रत्येक लहर में अपना एक निरालापन।।
रचे रुचिर रचनाएँ जग में अमर प्राण भरने वाली।
दिशि-दिशि को अपनी लाली से अनुरंजित करने वाली।।
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दिल नही भरा अभी तक
क्या - क्या नहीं पढ़वा दूँ सोच रही हूँ
सादर
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दिल नही भरा अभी तक
क्या - क्या नहीं पढ़वा दूँ सोच रही हूँ
सादर
शुभ संध्या..
ReplyDeleteआज की सारी रचनाएँ कविताकोश के सौजन्य से हैं
सादर..
बहुत बढ़िया संकलन । राष्ट्र कवि के रूप में इनका नाम कभी सुना नहीं ।
ReplyDeleteसादर नमन दीदी
Deleteविकीपीडिया में लिखा है
आप स्वतंत्रता सेनानी भी है
इनकी कविताएँ स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल है
और तो और आप स्वयं कक्षा 9 तक ही पढ़ी हैं
सादर
सुंदर संकलन ! शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचनाएँ,बहुत सुंदर संकलन ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर माधुर्य से भरपूर सभी रचनाएं मन की गहरी अनुभूति।
ReplyDeleteशानदार संकलन।
बधाई ।
सादर।