सांध्य अंक में आप सभी का
अभिनंदन
------
तुम्हारे संस्कार हैं उनके आदर
और सम्मान के लिए तो
कभी प्रेम मेंं अपने घुटनों में
झुकती हो
वो अपने पौरुष के अहं में चूर
गर्वोन्मत
तुम्हारे भावों से खेलकर,
तुम्हारी सरलता और निश्छलता को
छलकर,
तुम्हें पाँव के अँगूठें तक झुका
तुम्हारे रीढ़ पर प्रहार कर
तुम्हें रीढ़विहीन कर देना चाहता है
ताकि तुम आश्रिता बनकर
उनकी दया पर जीवित रहो
आजीवन रेंगती रहो
उसके आसपास।
सुनो स्त्री,..!
अपने दुख दर्द मत बताना किसी को,
जिस पर यकीन करोगी वो साबित कर देगा चरित्रहीन,
जिससे मदद मांगोगी वो कहेगा
आदरणीया इससे आपकी ही बदनामी होगी
क्योंकि आप महिला हैं।
हसरत-ए-दीदार में
सूख गया
बेकल आँखों का पानी,
कहने लगे हैं लोग
यह तो है
गुज़रे ज़माने की कहानी।
बोरे में बंद क़ानून
घुटन से तिलमिलाता रहा
पहरे में कुछ
राजनेताओं की आत्मा
राजनीति का खड़ग लिये
वहीं खड़ी थी |
आपका और हमारा वजूद भी है
आपका है हुनर जो ,हमारी कमी!
दिन की हलचल में आन रखते हैं
रात चुपके से फिर गुजारी कमी!
कोई तो कुछ कहो मुलाज़िम को
बात दर बात पे सरकारी कमी ?
कानून से भयभीत है इंसानियत
आजकल चाय बनती नहीं है अंततोगत्वा वह तैयार होती है। यकीन मानिए जब चाय को कप में डालकर; चाय के कप को अपने साथ ले जाकर अपनी कुर्सी में बैठकर उसकी पहली चुस्की लेकर कहता हूँ कि अंततोगत्वा चाय बन ही गयी तो ऐसा अहसास होता है कि मानों मैंने चाय की पत्ती को चाय के बगानों में उगाने से लेकर उसे प्रोसेस करने और फिर गुरुग्राम तक पहुंचाने के कार्यों को अपने इन कोमल हाथों से पूरा किया हो। बड़ा अच्छा लगता है।
गेंदाकार लोइयों से बेलती वृत्ताकार रोटियाँ
मानो करती भौतिक परिवर्त्तन
वृताकार कच्ची रोटियों से तवे पर गर्भवती-सी
फूलती पक्की रोटियाँ
मानो करती रासायनिक परिवर्त्तन
तब-तब तुम तो ज्ञानी-वैज्ञानिक
लगती हो अम्मा !
मानो करती भौतिक परिवर्त्तन
वृताकार कच्ची रोटियों से तवे पर गर्भवती-सी
फूलती पक्की रोटियाँ
मानो करती रासायनिक परिवर्त्तन
तब-तब तुम तो ज्ञानी-वैज्ञानिक
लगती हो अम्मा !
★★★★★
आज के लिए इतना ही
कल मिलिए यशोदा दी से।