सादर अभिवादन
शनिवार....
साल जाने को आतुर है...
और जाने वाला साल ये
कह रहा है... ज्यादा खुशी मत मनाओ..
ये आने वाला साल भी ...एक साल ही चलेगा..
बस दो दिन और.....
आइए चलें इस सप्ताह क्या पढ़ा गया....
मेले में रह जाए जो अकेला..
बात अपने देश की राजनीति से शुरु करुँ , तो इस वर्ष ने "विधाता" कहलाने वाले लोगों को आईना दिखलाया है और सियासी जुमले के बादशाह के समक्ष वाकपटुता की राजनीति में अनाड़ी " पप्पू "को खिलाड़ी बनने का एक अवसर भी दिया है। "नोटा" की पहली बार निर्णायक भूमिका दिखी अपने पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश में। अपने यूपी में बुआ- भांजा मिल कर सियासी खिचड़ी पकाने की तैयारी में जुटे हैं। बिहार में भी विधान सभा चुनाव में सत्ता पक्ष को तलवार की धार से गुजरना होगा , यानी कि वर्ष 2019 के चार - पांच माह तो सियासी बिसात पर शह- मात के खेल में ही गुजर जाएँगे। किसी को राजनैतिक वनवास मिलेगा , तो किसी को राजपाट ।'
इक बगल में चाँद होगा....
इक बगल में चाँद होगा, इक बगल में रोटियाँ
इक बगल में नींद होगी, इक बगल में लोरियाँ
हम चाँद पे, रोटी की चादर डाल के सो जाएँगे
और नींद से कह देंगे लोरी कल सुनाने आएँगे
शनिवार....
साल जाने को आतुर है...
और जाने वाला साल ये
कह रहा है... ज्यादा खुशी मत मनाओ..
ये आने वाला साल भी ...एक साल ही चलेगा..
बस दो दिन और.....
आइए चलें इस सप्ताह क्या पढ़ा गया....
मुआवज़ा ......
औपचारिक भाषण के पश्चात जब मीरा और रामनाथ को बुलाकर दो लाख के मुआवजे का चेक थमाया गया तो मीरा ने रूंधे गले से कहा-
"इन पैसों से मेरी माँ अब वापस नहीं आ सकेगी , मुझे मुआवज़ा नहीं चाहिये, मेरी विनम्र विनती है सेक्रेटरी जी से कि इन पैसों का उपयोग खराब लिफ्ट को बनवाने में किया जाय ताकि कोई और पार्वती ऐसी दुर्घटना का शिकार न हो।"
"इन पैसों से मेरी माँ अब वापस नहीं आ सकेगी , मुझे मुआवज़ा नहीं चाहिये, मेरी विनम्र विनती है सेक्रेटरी जी से कि इन पैसों का उपयोग खराब लिफ्ट को बनवाने में किया जाय ताकि कोई और पार्वती ऐसी दुर्घटना का शिकार न हो।"
मेले में रह जाए जो अकेला..
बात अपने देश की राजनीति से शुरु करुँ , तो इस वर्ष ने "विधाता" कहलाने वाले लोगों को आईना दिखलाया है और सियासी जुमले के बादशाह के समक्ष वाकपटुता की राजनीति में अनाड़ी " पप्पू "को खिलाड़ी बनने का एक अवसर भी दिया है। "नोटा" की पहली बार निर्णायक भूमिका दिखी अपने पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश में। अपने यूपी में बुआ- भांजा मिल कर सियासी खिचड़ी पकाने की तैयारी में जुटे हैं। बिहार में भी विधान सभा चुनाव में सत्ता पक्ष को तलवार की धार से गुजरना होगा , यानी कि वर्ष 2019 के चार - पांच माह तो सियासी बिसात पर शह- मात के खेल में ही गुजर जाएँगे। किसी को राजनैतिक वनवास मिलेगा , तो किसी को राजपाट ।'
इक बगल में चाँद होगा....
इक बगल में चाँद होगा, इक बगल में रोटियाँ
इक बगल में नींद होगी, इक बगल में लोरियाँ
हम चाँद पे, रोटी की चादर डाल के सो जाएँगे
और नींद से कह देंगे लोरी कल सुनाने आएँगे
वो दिसम्बर का ही कोई दिन रहा होगा. दोनों बैठे थे शहर के एक रेस्टोरेंट में. लड़की एक बात को लेकर बड़ी एक्साइटेड थी. उसने पिछली रात एक नयी अंग्रेजी सीरीज देखी थी जिसमें नायक एक ऐसे कमरे की छानबीन करता है जिसके दरवाज़े को खोलते ही इंसान ऑल्टर्नेट यूनिवर्स में चला जाता है और फिर वहां से वापस नहीं लौटता.
उस सीरियल के बारे में लड़के को बताते हुए लड़की ने कहा, “जानते हो ये सीरियल तो अभी आया है, लेकिन मेरी ऐसी एक कल्पना बहुत पहले की है. मैं तो अब भी जब कभी सो कर उठती हूँ और अपने कमरे के बाथरूम में जाती हूँ तो मुझे हमेशा लगता है कि बाथरूम के दीवारों में कोई सीक्रेट दरवाज़ा खुलेगा, और उस दरवाज़े के दूसरी तरफ कोई अनजानी दुनिया होगी और मैं उस दुनिया में जाऊँगी, लेकिन वहां जाने से पहले इस दुनिया में अपना कोई क्लोन छोड जाऊँगी. मेरा वो क्लोन यहाँ मेरा सब काम करेगा, कॉलेज जाएगा, मेरे असाइनमेंट बनाएगा, खेलेगा, खायेगा, घूमने जाएगा, तुम्हारे साथ बैठ कर कॉफ़ी पिएगा और किसी को पता नहीं चलेगा कि मैं यहाँ पर नहीं हूँ.
सुन लो रूह की...
फिर न धुक धुक
हो ये धड़कन
और ना,
संकुचन, स्पंदन.
खो जाने दो, इन्हें शून्य में.
हो न हास और कोई क्रंदन.
सुन लो रूह की...
फिर न धुक धुक
हो ये धड़कन
और ना,
संकुचन, स्पंदन.
खो जाने दो, इन्हें शून्य में.
हो न हास और कोई क्रंदन.
ज़िन्दगी से लम्हे चुरा बटुए मे रखता रहा !
फुरसत से खरचूंगा बस यही सोचता रहा !!
उधड़ती रही जेब करता रहा तुरपाई !
फिसलती रही खुशियाँ करता रहा भरपाई !!
इक दिन फुरसत पायी सोचा खुद को आज रिझाऊं
बरसों से जो जोड़े वो लम्हे खर्च आऊं !!
आपको पसंद आएगा अवश्य....
विदा 2018...मिलेंगे 2019 की नई सुबह में
यशोदा
इसे दिसम्बर नहीं
सांता आया कहना चाहिए
इसके काँधे पे
जो झोली है न उसमे से
झाँकती है जनवरी
कुनमुनाता है बसन्त
बिखरा है गुलाल
मचाते हुए धमाल !
ऐ दिव्यांग तेरे ज़ज़्बे को सलाम
अमां बड़ी दिक्कत है ये सोचने में
आख़िर कोई कमी हो तो कहें ना !
अच्छा सुनो भई दिल छोटा ना करना !
कोई दिलचस्प अजूबा मिले तो ले लेना !
कोई अजूबा रहेगा पास तो जी बदलेगा ।
आने-जाने वालों का तांता लगा रहेगा ।
मजमा तो किस्से-कहानियों से भी जमेगा ।
ले आना थैला-भर, खूब माहौल बनेगा ।
एक गीत...
एक गीत...
आ कहीं दूर चले जाएं हम
दूर इतना कि हमें छू न सके कोई ग़म
फूलों और कलियों से महके हुए इक जंगल में
इक हसीं झील के साहिल पे हमारा घर हो
ओस में भीगी हुई घास पे हम चलते हों
रंग और नूर में डूबा हुआ हर मंज़र हो..
आपको पसंद आएगा अवश्य....
विदा 2018...मिलेंगे 2019 की नई सुबह में
यशोदा