Saturday, November 24, 2018

15.....दोस्तों के बीच में भी घुस आती है चिढ़

सादर अभिवादन...
आज का मौन
वाकई मौन है..
पता नही क्यों....
चलिए नई-जूनी रचनाओं की ओर...


केक गुलाबी फूलों वाला

"आज केक आयेगा।"

केक आयेगा न पापा? मेरे चेहरे पर मासूम आँखें टिकाकर तनु ने पूछा।

मैंने मुस्कुराकर हामी भरी तो उसकी आँखों में अनगिनत दीप जल उठे।


सात वर्षीय बिटिया तनु खुशी से नाच रही थी पूरे घर में, 

आज उसका जन्मदिन है। 
आज के दिन के लिए खास उसने तीन महीने पहले से ही मुझसे 
कह रखा था उसे भी अपने जन्मदिन पर नयी फ्रॉक पहनकर केक काटना है,रंगीन मोमबत्तियाँ फूँक मारकर बुझानी है फिर पापा और मम्मा बर्थडे सॉग गायेंगे। फिर वह टेस्टी वाला केक खायेगी। सबसे 
पहले पापा को फिर मम्मा को खिलायेगी केक पर क्रीम का जो फूल होता है न उसको और कोई नहीं खायेगा बस वही खायेंगी,उसकी 
मासूम बातें मुस्कुराने को मजबूर कर देती है।

मन का जंगल

कभी यात्रा की है 
किसी जंगल की ?
नहीं? 
तो सुनो 
अपने मन में झांको
एक गहन जंगल है वहाँ
घुप्प अंधेरा....
कंटीली झाड़ियाँ 
हर रोज उगते कूकुरमुत्ते 
और सुनो ध्यान से 
बोलते सियार, रोते कूत्ते
सन्नाटे को चीरते झींगूर
हँसी नहीं तेज अट्टहास है वहाँ 
किसका?  




पुष्पों की सुंदर सौगात
करती धरा का श्रृंगार
लाल, गुलाबी,पीले
पुष्प यहां कई रंग के खिलते
लाल पुष्प कुमकुम सी आभा
सबके मन को बहुत लुभाता
पीले पीले पुष्प सुनहरे
सोने सी छटा बिखेरे





”आपकी आँटी भूली नहीं हैं... तीन साल से कर्ज उतार रही हैं... मेरा, अपना खाता तो खुलवाई ही उस बैंक में जिसमें आपलोग काम करते हैं! कई स्कीम में भी पैसा डलवाती रहती हैं... आपके साथ आये इन महोदय को वो समझ रही हैं जो इन्हें यकीन दिला चुके हैं कि ये ही सड़क से उठाकर घर पहुँचाये थे...।"
पिन भी गिरता तो शोर मचता......

उलूक उवाच..
घरवालों से 
हो जाती है चिढ़
घरवाली भी 
दिखलाती है चिढ़
रिश्तेदारों से 
हो जाती है चिढ़

पड़ोसी को 

पड़ोसन से 
करवाती है चिढ़

दोस्तों के बीच में भी 

घुस आती है चिढ़


आज के लिए इतना ही
आज्ञा दें

यशोदा

Saturday, November 17, 2018

14....छ्ठ पर्व के कुछ चुनिंदा चित्र

एक अँक न दे पाने का अफसोस सालता रहेगा.
न जाने कब तक...इन उत्सवों ने मौका ही नहीं दिया
न जाने क्यों पाँच लिंकों का आनन्द जारी रहा...जबकि
दो चर्चाकारों ने त्रिदिवसीय व्रत का पारण बुध को किया
शुभकामनाएँ उनको...



छ्ठ पर्व के कुछ चुनिंदा चित्र......  हेमन्त दास


छ्ठ पूजा की हार्दिक शुभकामना!
बिहार के छठ उत्सव को पवित्र धार्मिक उत्साह के साथ मनाया जाता है और पवित्रता, शुद्धता, स्वच्छता और संयम के मामले में चरम अनुपालन के लिए जाना जाता है। अहिंसा और समावेश वास्तविक अर्थ में प्रदर्शित होता है और यही कारण है कि लोग इस सप्ताह के दौरान अपनी जाति और धर्म को भूल जाते हैं। यहां हम इस पर्व के कुछ ताजा चित्र प्रस्तुत कर रहे हैं ताकि आप इस त्यौहार के वास्तविक वातावरण का अनुभव कर सकें-




आस्था निजी भावना... विभा दीदी

रूढ़िवादी:- एक उम्र होने के बाद महिलाएँ सिला हुआ ब्लाउज पेटीकोट नहीं पहनती थी... तर्क के आगे उनकी सोच तब नहीं थी...
सिले कपड़े को अशुद्ध मानते थे। कारण बस यह है कि पहले के समय में सिले कपड़े नहीं होते थे...।

"तलवार उतना ही भाँजो ,जितना से दूसरे की नाक ना कटे"


मैं नदी बन भी गई तो क्या हुआ - डॉ. वर्षा सिंह


किस तरह उजड़ी हुई सी भूमि पर 
रख सकेंगे उत्सवों वाले दिए 

मैं नदी बन भी गई तो क्या हुआ 
कौन जो सागर बने मेरे लिए 

मिथ्या यह जीवन..... अनुराधा चौहान

मिथ्या यह जीवन
मिथ्या इसकी माया
जिसको अब तक
कोई समझ नहीं पाया
मिथ्या है यह काया
जो सबके मन भाया
मौत के सच को
कोई समझ नहीं पाया
व्यर्थ के झगड़ों में
क्यों जीवन को खोते

बुला रहा है कौन....मुदिता
एहसास अंतर्मन के
छाँव ममत्व की
देती है सुकून 
द्वंदों की धूप में झुलसे 
मन को
छुप जाती हूँ 
माँ के स्नेहिल आँचल में 
सोचते हुए शायद यहीं है 
यहीं कहीं है 
जो बुला रहा है मुझको 
देने सुकून 
तभी होती है सरगोशी सी 
कानों में मेरे "चली आओ ".....

आज के लिए बस
मिलते हैं अगले शनिवार को
यशोदा
















Saturday, November 3, 2018

13.....महज इक्तेफाक था

सादर अभिवादन.....
एक अरसे के बाद फिर हम

जब हम...तब तुम....अभिलाषा (अभि)
जब हम घर का आख़िरी दिया बुझा दें,
जब हम भीतर आकर
किवाड़ की सांकल चढ़ा दें,
जब हम इन पाँवों पर
होंठों की लकीर सजा दें,
जब हम बदन से लिबास की
दूरी बढ़ा दें,


इक्तेफाक...डॉ. अपर्णा त्रिपाठी
कैसे समझ लूं, मिलना तुमसे
महज इक्तेफाक था
इतने बडे जहाँ में
एक छत के नीचे
तेरा मेरा साथ होना
महज इक्तेफाक था
हजारों की भीड में
टकरा जाना


ज्योति जीवन की..अभिलाषा चौहान
अभी भी जल रही
आश-ज्योति
प्रदीप्त जिजीविषा
प्रबल होती
प्राण- ज्योति
अनवरत, निरंतर।


वो आकर्षण :)...संजय भास्कर
कॉलेज को छोड़े करीब 
नौ साल बीत गये !
मगर आज उसे जब नौ साल बाद 
देखा तो 
देखता ही रह गया !
वो आकर्षण जिसे देख मैं 
हमेशा उसकी और
खिचा चला जाता था !
आज वो पहले से भी ज्यादा 
खूबसूरत लग रही थी 

आज बस
मिलते हैं फिर
दीपावली की अग्रिम शुभकामनाएँ
यशोदा