हर सांस के साथ पहलू में धड़कता मेरा दिल,
धड़कन में तुम एहसास कराती कि मैं हूँ अभी।
तन्हाई से डर कर मेरा आँखें बंद कर लेना,
तसव्वुर में परछाई दिखाती कि मैं हूँ अभी।
ख़ुद में करना तफ़्सील से तलाश ख़ुद को,
अन्दर से वही आवाज़ आती कि मैं हूँ अभी।
घबरा के ख़ामोशी के आगोश में सोता जब,
इक थपकी प्यार से सुलाती कि मैं हूँ अभी।
भरोसा ख़ुद पे जब होने लगता है कुछ कम,
हलकी सी शाबाशी है जगाती कि मैं हूँ अभी।
ऐसे में कैसे कहूँ कि तुम मुझ में कहीं नहीं,
रूह पे मेरी है आयात छपी कि मैं हूँ अभी।
मेरी हमनवा तेरी जुदाई का कैसा रंज-ओ-ग़म,
जब अनकही हर सांस में बसी कि मैं हूँ अभी।
- विकास शर्मा "दक्ष"